ज्योतिष के दृष्टिकोण से धन विचार
इस मानव जीवन में धन की आवश्यकता सभी को होती है और उस धन को अर्जित करने के कई मार्ग हैं, कुछ लोग धर्मादि कार्य, व मेहनत करके धन अर्जित करते हैं और कुछ लोग निन्दित कार्य से धन संचित करते हैं| हमारे इस ज्योतिषशास्त्र में धन का विचार बृहद रूप से किया गया है|
अन्योन्यं भवनस्थयोर्बिहगयोर्लग्गिनादिरिः फान्तकं
भावाधिश्वरयोः क्रमेण कथिताः षट्षष्टियोगा जनैः
त्रिन्षद दैन्य मुदीरितं व्ययरिपुच्छि द्रादिना थोत्थिता-
स्त्वष्टौ शौर्यपतेः खला निगदिताः शेषा महाख्याः स्मृता||
मूर्खः स्यादपवादको दुरितकृन्नित्यं सपत्नर्दितः
क्रूरोक्तिः किलदैन्य जश्चलमतिर्विच्छिन्न कर्योद्दमः
उदृन्तश्चखले कदाचिदखिलं
सौम्योक्तिश्च कदाचिदेवमशुभं दरिद्रयदुः खादिकम्|
भावाधिश्वरयोः क्रमेण कथिताः षट्षष्टियोगा जनैः
त्रिन्षद दैन्य मुदीरितं व्ययरिपुच्छि द्रादिना थोत्थिता-
स्त्वष्टौ शौर्यपतेः खला निगदिताः शेषा महाख्याः स्मृता||
मूर्खः स्यादपवादको दुरितकृन्नित्यं सपत्नर्दितः
क्रूरोक्तिः किलदैन्य जश्चलमतिर्विच्छिन्न कर्योद्दमः
उदृन्तश्चखले कदाचिदखिलं
सौम्योक्तिश्च कदाचिदेवमशुभं दरिद्रयदुः खादिकम्|
कलदीपिका योगध्या ३२,३३,३४, इस ज्योतिशशास्त्र में धन का विचार २,११,९,५,७,१०,६ भावों से करते हैं| धन के विचार में प्रमुख भावों में २,११,५ एवं ९ भाव है| इन भावों का परस्पर, प्रबल सम्बन्ध उत्तम धन को प्राप्त करता है| उपरोक्त विचारणीय भावों से जो धन का विचार किया जाता है इनकी प्रवृत्ति व विचारणीय तथ्य का स्वरुप अलग-अलग होता है|
२ भाव संचित धन का कारक भाव है, ११ भाव धनागमन भाव है, १० भाव धन से संबंधित किये गए कार्य का भाव है, ७ भाव पैतृक सम्पत्ति का भाव है यह भी धन का ही स्वरुप है, ९,५, भाव भाग्य और कुशलता के आधार पर होने वाले कार्य के द्वारा धन आगमन का विचार है, ६ भाव लाटरी, सट्टा, सेयर मार्किट, सूद, व्याज और ऋण से संबंधित भाव है|
भाग्येश की सबलता का प्रभाव एकादश द्वितीय या पञ्चम में हो तो जातक इस स्थिति में प्रचुर धन प्राप्त करता है ६ भाव का सम्बन्ध बुध से होकर १० मेष से भी उत्तम सम्बन्ध का भी निर्माण करता हो तो इस स्थिति में जातक लाटरी, सट्टा, शेयर मार्किट इत्यादि से धन की प्राप्ति करता है|
भाग्येश, पंच्मेश, एकादशेष, द्वीतियेश, व दशमेश का परस्पर शुभ सम्बन्ध जातक के जीवन में व्यापक धन प्रदान करता है यदि उपरोक्त भावों में गुरु, बुध, शुक्र, चन्द्र इत्यदि का सम्बन्ध हो तो धन भोग में यह श्रेष्टतम योग होता है| ९,२ व ११ भाव में बली गुरु का स्थित होना भी धन योग होता है|
द्वीतियेश की स्थिति संचित धन के लिए महत्वपूर्ण कारक है द्वितीयेश, केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रहों या मित्र ग्रहों के प्रभावों में हो तो जातक के जीवन में पर्याप्त धन संचित हो पाता है एवं जातक के जीवन में धन संबंधित व्यवधान आने की संभावना नहीं रहती|
द्वीतियेश बलि शुक्र व गुरु से सम्बन्ध करता हो यह भी उत्कृष्ट धन होता है प्रायः गुरु, शुक्र, बुध, चन्द्रमा की महादशा अन्तर्दशा से धनेश का सम्बन्ध हो इस स्थिति में जातक को धन की प्राप्ति होती है|
जन्मांक चक्र में सप्तमेश व द्वीतियेश का प्रगाढ़ सम्बन्ध होने पर जातक अपने जीवन में अचल संपत्ति का संचय वृहद रूप में करता है एवं जातक को पैतृक धन की भी प्राप्ति होती है जातक अगर व्यापार इत्यादि कार्य में लगा हो तब भी जातक धन अधिक अर्जित करता है|
जन्मकुण्डली षष्ठेश, दशमेश का प्रबल सम्बन्ध बुध के साथ हो व जन्मकुण्डली में बुध सबल हो व दशान्तर्दशा में भी इनका सम्बन्ध हो इस स्थिति में जातक स्वभावतः शेयर मार्केट, लाटरी, सट्टा इत्यादि से धन को प्राप्त करता है|
२ भाव संचित धन का कारक भाव है, ११ भाव धनागमन भाव है, १० भाव धन से संबंधित किये गए कार्य का भाव है, ७ भाव पैतृक सम्पत्ति का भाव है यह भी धन का ही स्वरुप है, ९,५, भाव भाग्य और कुशलता के आधार पर होने वाले कार्य के द्वारा धन आगमन का विचार है, ६ भाव लाटरी, सट्टा, सेयर मार्किट, सूद, व्याज और ऋण से संबंधित भाव है|
भाग्येश की सबलता का प्रभाव एकादश द्वितीय या पञ्चम में हो तो जातक इस स्थिति में प्रचुर धन प्राप्त करता है ६ भाव का सम्बन्ध बुध से होकर १० मेष से भी उत्तम सम्बन्ध का भी निर्माण करता हो तो इस स्थिति में जातक लाटरी, सट्टा, शेयर मार्किट इत्यादि से धन की प्राप्ति करता है|
भाग्येश, पंच्मेश, एकादशेष, द्वीतियेश, व दशमेश का परस्पर शुभ सम्बन्ध जातक के जीवन में व्यापक धन प्रदान करता है यदि उपरोक्त भावों में गुरु, बुध, शुक्र, चन्द्र इत्यदि का सम्बन्ध हो तो धन भोग में यह श्रेष्टतम योग होता है| ९,२ व ११ भाव में बली गुरु का स्थित होना भी धन योग होता है|
द्वीतियेश की स्थिति संचित धन के लिए महत्वपूर्ण कारक है द्वितीयेश, केंद्र व त्रिकोण में शुभ ग्रहों या मित्र ग्रहों के प्रभावों में हो तो जातक के जीवन में पर्याप्त धन संचित हो पाता है एवं जातक के जीवन में धन संबंधित व्यवधान आने की संभावना नहीं रहती|
द्वीतियेश बलि शुक्र व गुरु से सम्बन्ध करता हो यह भी उत्कृष्ट धन होता है प्रायः गुरु, शुक्र, बुध, चन्द्रमा की महादशा अन्तर्दशा से धनेश का सम्बन्ध हो इस स्थिति में जातक को धन की प्राप्ति होती है|
जन्मांक चक्र में सप्तमेश व द्वीतियेश का प्रगाढ़ सम्बन्ध होने पर जातक अपने जीवन में अचल संपत्ति का संचय वृहद रूप में करता है एवं जातक को पैतृक धन की भी प्राप्ति होती है जातक अगर व्यापार इत्यादि कार्य में लगा हो तब भी जातक धन अधिक अर्जित करता है|
जन्मकुण्डली षष्ठेश, दशमेश का प्रबल सम्बन्ध बुध के साथ हो व जन्मकुण्डली में बुध सबल हो व दशान्तर्दशा में भी इनका सम्बन्ध हो इस स्थिति में जातक स्वभावतः शेयर मार्केट, लाटरी, सट्टा इत्यादि से धन को प्राप्त करता है|
कोशाधिशः स्वराशौ सुरगुरु सहितः सर्वसम्पत्प्रदः स्यात् लतीपि
धन भाव का स्वामी गुरु के साथ अपनी राशि में हो अथवा केंद्र (१,४,७,१०) में हो तो उस जातक को सर्वसम्पत्ति प्रदान करता है|
लक्ष्मी योग
स्वर्क्षोच्चे यदि कोणकन्टलकयुतौ भग्येश शुक्रावुभौ
कक्ष्याख्योथ तथा विधे हिमकरे गौरीति जीवेक्षिते ||
कक्ष्याख्योथ तथा विधे हिमकरे गौरीति जीवेक्षिते ||
यदि नवें स्थान का स्वामी और शुक्र दोनों अपने घर में या उच्च राशि में स्थित होकर लग्न से केंद्र त्रिकोण में हो तो लक्ष्मी योग होता है|
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